DR. RAJESH VERMA
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प्राथमिकताएं

5/26/2021

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​जहां एक ओर अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी, दवाइयों की कमी, बिस्तर की कमी और वेंटिलेटर की कमी का शोर मचा हुआ है वहीं दूसरी ओर अक्सर सन्नाटे में रहने वाले श्मशान घाटो तथा कब्रिस्तानों में भी कोहराम मचा हुआ है। मैं शायद कुछ हद तक लोगों की बेबसी को महसूस कर सकता हूं क्योंकि अपने परिवार के एक कोरोना रोगी के लिए मुझे भी रेमडेसिविर इंजेक्शन ढूंढने में काफी मशक्कत करनी पड़ी और काला बाजारी का सामना करना पड़ा।

हम आजादी के इतने वर्षों बाद भी स्वास्थ्य सुविधाओं का संतोषजनक ढांचा खड़ा नहीं कर पाए है और इसके लिए सरकारों को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है क्योंकि लोकतंत्र में सरकार भी हम ही चुनते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना वायरस महामारी है और विश्वव्यापी है परंतु भारत में इस आपदा की भयावहता का दोष किसे दे? इस महामारी ने ना सिर्फ देश की स्वास्थ्य सेवाओं की सच्चाई को उजागर किया बल्कि दम तोड़ती मानवीय संवेदना हो को भी बेनकाब किया है। यह समय किसी को दोष देने का नहीं अपितु सबक लेने का है। हम सबको निम्न विषयों पर सोचना होगा और इन्हें अपनी प्राथमिकता बनाना होगा।

१. स्वास्थ्य और शिक्षा दो ऐसे क्षेत्र हैं जिससे मानव जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। यह दोनों क्षेत्र कभी भी हमारे देश में प्राथमिकता नहीं रहे परंतु आने वाले समयमें केंद्र और राज्य सरकारों को स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रमें भारी निवेश करना पड़ेगा। स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च का वैश्विक स्तर 6 फीसद माना गया है जबकि भारत अपनी कुल जीडीपी का 2 फीसद भी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च नहीं करता।

२. मध्यमवर्ग और गरीब तबके का एक बड़ा हिस्साजो आज भी स्वास्थ्य बीमा के दायरे में नहीं है के लिए किफायती और उच्चगुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं का तंत्र खड़ा करना होगा या फिर मानव कल्याणकारी योजनाओं को अमल में लाना होगा जो प्राइवेट अस्पतालों के खर्च का वहन करने में लोगों की मदद कर सकें।

३. हम हमेशा ही जमाखोरों और कालाबाजारी करने वालों के आगे बेबस नजर आते हैं। चंद मुट्ठी भर लोगों के लालच को मानवीय मूल्यों पर हावी नहीं होने दिया जा सकता परंतु इसके लिए हर देशवासी को आगे आकर जमाखोरी और कालाबाजारी के विरुद्ध मुहिम छेड़नी होगी क्योंकि यह मुट्ठी भर लोग हम में से ही हैं और इन्हें हम ही खत्म कर सकते हैं।

४. सेहत के प्रति बढ़ती लापरवाही और बाजारीकरण के प्रभाव के बीच हम लोग अपनी संस्कृति की खूबियों को भूलते जा रहे हैं। बस हमें एक बार फिर अपनी जड़ों का महत्व समझना होगा और उस जीवनशैली को अपनाना होगा जो हमें हमारे ऋषि-मुनियों और पूर्वजों द्वारा दी गई है। इस जीवन शैली में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए पर्याप्तसं संसाधन उपलब्ध है। कुछ हद तक यह बात हमें करोना कॉल में गिलोय, आमला, तुलसी, नीम इत्यादि आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का महत्व समझ मैं आ गया है। 
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५. दोबारा देशभर में शटर गिराने (लॉकडाउन) की नौबत आयीं तो आर्थिक हालात इतने बद्तर हो जाएंगे कि संभाले नहीं संभलेंगे। हालांकि मानव जीवन सबसे ऊपर है परंतु हमें यह भी याद रखना होगा की लॉकडाउन की मार सबसे ज्यादा गरीब तबके पर ही होती है। इसलिए हर समय मास्क लगाना, 2 गज की दूरी बनाए रखना, हाथ बार-बार साबुन से धोने की आदत और कोविड वैक्सीन ही हमें इस महामारी से सुरक्षा प्रदान कर सकती है लॉकडाउन नहीं।

राष्ट्रवाद के नाम पर आरोप-प्रत्यारोप का समय नहीं है अपितु एकजुट होकर मानवता की रक्षा करने का वक्त है। डर महामारी का नहीं डर सही समय पर स्वास्थ्य सेवा ना मिलने का है याद रहे मृत्यु का इंतजार मृत्यु से भी भयावह होता है।

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